कितनी ही थालियों को देखा है मैंने, कोई नुकीली कोई पैने .
किसी में सजती दाल और चावल, किसी में होता चिकेन का स्टार्टर.
कहीं जूठे थाली में पनपते कीड़े ,कहीं सजती थाली दीयों से घिरे .
कोई भर थाली खा होते हट्टे -कट्टे , कोई एक ही थाली के चट्टे -बट्टे .
किसी की थाली होती खाली, किसी में होते दस -बारह पैसे .
एक ही थाली के रूप हैं ऐसे , कोई भर लेता जरुरत से ज्यादा, किसी की भरती जैसे तैसे .
कितनी ही थालियों को देखा है मैंने ,
एक हाथ से थाली तो बजा ही लेते हैं !
No comments:
Post a Comment