Wednesday, January 11, 2012

ज़िन्दगी की इसी कस-म-कस में हर रोज यहाँ जलता एक मोहल्ला है |

हर तरफ ही एक शोर है, हर तरफ ही एक हल्ला है,
ज़िन्दगी की इसी कस-म-कस में हर रोज यहाँ जलता एक मोहल्ला है |

तुम कहते हो सब कुछ पहले से लिखा है | अगर सब कुछ पहले से लिखा है
तो क्या ये भगवान की साजिश है या इन सब के पीछे अल्ला है ?
ज़िन्दगी की इसी कस-म-कस में हर रोज यहाँ जलता एक मोहल्ला है |

तुम जो भी हो कभी सामने तो आओ, देखो इस मासूम सी बच्ची को
जिसके अभी सपने देखने के कंठ भी नहीं फूटे होंगे,
जिसकी एक खरोच पर पूरा परिवार एक दुसरे को डांटते हैं, दौड़ते हैं
उसे बचने के लिए, तुमने तो उसकी जान ली है, कभी सामने तो फिर आक्रोश देखना
उस खून से लथ पथ जान, जो ज़मीं पे पड़ी है, उनके लिए जेहाद देखना |

जो तुम ऊपर वाले के नाम पर सब को भड़काते हो
अगर खुदा के बन्दे हो या भगवान के भक्त बेशक ही बहूत करीब रहे होगे उनसे|
जरा पूछना उनसे क्या ज़िन्दगी का यही एक सिलसिला है ?
यहाँ ज़िन्दगी की इसी कस-म-कस में हर रोज यहाँ जलता एक मोहल्ला है |

पता नहीं इसे मै क्या कहूं ये तुम्हारी बहादुरी है या हमारी कमजोरी या ये बस यूँही चलता है |
धमाकों की जिस गूंज पहले जब खून खौलता था अब इन् धमाकों से दिल दहलता है और
लोगों की हर एक " इस बार चुप नहीं बैठेंगे" की शोर से कुछ हौसला बनता है
ज़िन्दगी की इसी कस-म-कस में हर रोज यहाँ जलता एक मोहल्ला है |

जहाँ पहले लोग ईद और दीवाली की तारीख कैलेंडर में देखा करते थे,
वहीँ हर साल एक और तारीख धमाकों का जुड़ता है और फिर...
ज़िन्दगी की इसी कस-म-कस में हर रोज यहाँ जलता एक मोहल्ला है |

हर तरफ ही एक शोर है, हर तरफ ही एक हल्ला है,
ज़िन्दगी की इसी कस-म-कस में हर रोज यहाँ जलता एक मोहल्ला है |

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