Thursday, December 8, 2011

एक हाथ से थाली बजती है !

कितनी  ही  थालियों  को  देखा  है  मैंने, कोई  नुकीली  कोई  पैने . 

किसी  में  सजती  दाल  और  चावल, किसी  में  होता  चिकेन  का  स्टार्टर.

कहीं  जूठे  थाली  में  पनपते  कीड़े ,कहीं  सजती  थाली  दीयों  से  घिरे .
 
कोई  भर  थाली  खा  होते  हट्टे -कट्टे  , कोई  एक   ही  थाली  के  चट्टे -बट्टे .

किसी  की  थाली  होती  खाली,  किसी  में  होते  दस -बारह  पैसे .  

एक  ही  थाली   के  रूप  हैं  ऐसे , कोई  भर  लेता  जरुरत  से  ज्यादा,  किसी  की  भरती  जैसे  तैसे .   

कितनी  ही  थालियों  को  देखा  है  मैंने ,  

माना एक हाथ से ताली नहीं बजती पर सड़क किनारे बैठने वाले
 एक हाथ से थाली तो बजा ही लेते हैं !